बिलासपुर: ओबीसी आरक्षण मामले में हाईकोर्ट ने सूरजपुर जिला पंचायत उपाध्यक्ष की याचिका खारिज कर दी है. छत्तीसगढ़ पंचायती राज अधिनियम में संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका पर डिवीजन बेंच में लंबी कानूनी बहस हुई. दोनों पक्षों को गंभीरता से सुनने के बाद हाईकोर्ट ने विधि संगत निर्णय लेते हुए मेरिट बेस पर याचिका को खारिज किया।
मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और न्यायाधीश रविन्द्र कुमार अग्रवाल की बैंच में मामले की सुनवाई हुई. इस दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता शक्तिराज सिन्हा ने राज्य शासन द्वारा ओबीसी वर्ग को आरक्षण प्रदान करने वाली छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम की धारा 129(ड.) की उपधारा (03) को विलोपित किए जाने और बीते वर्ष 3 दिसंबर 2024 को छत्तीसगढ़ पंचायत राज (संशोधन) अध्यादेश 2024 को लेकर अपना पक्ष रखा।
राज्य शासन की ओर से पैरवी करते हुए महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन भारत ने शासन का पक्ष रखते हुए इस मामले में नए अध्यादेश 23 जनवरी 2025 को जारी होने की बात कही. इसे सरकार की ओर से बजट सत्र में विधानसभा पटल में रखने की जानकारी दी. वहीं कोर्ट में संवैधानिक रूप से इस अध्यादेश को पारित होने को लेकर अनुच्छेद 213(2) के तहत राज्यपाल से सहमति पारित होने और विधानसभा के समक्ष पुनः समवेत होने से छह सप्ताह की समाप्ति पर या यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले निरनुमोदन का प्रस्ताव पारित करने को लेकर पक्ष रखा।
इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता शक्ति राज सिन्हा ने अपनी याचिका में कही बातों को दोहरा और आरक्षण संबंधी संशोधन के नियमों को लेकर पूर्व अध्यादेश पर अपनी बात रखी. साथ ही सुप्रीम कोर्ट के अध्यादेश को लेकर दिए गए निर्णय का संदर्भ दिया. इस पर महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन भारत ने अपनी दलील रखी. वहीं कोर्ट ने इस मामले में उन निर्णयों के संदर्भ से संबंध नहीं देखते हुए विधि संगत निर्णय लिया।
जानिए पूरा मामला
हाईकोर्ट में जिला पंचायत सूरजपुर के उपाध्यक्ष नरेश रजवाड़े ने याचिका लगाई थी. याचिकाकर्ता के मुताबिक, पांचवी अनुसूची में शामिल जिलों में ओबीसी वर्ग को आरक्षण प्रदान करने वाली छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम की धारा 129(ड.) की उपधारा (03) को लोप करने के लिए पिछले साल 3 दिसंबर को राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ पंचायत राज (संशोधन) अध्यादेश 2024 को लाया. भारत के संविधान की अनुच्छेद 213 में निहित प्रावधान के तहत कोई भी अध्यादेश अधिकतम छह माह की अवधि तक ही क्रियाशील होता है अथवा विधानसभा के आगामी सत्र में अनिवार्य रूप से प्रस्ताव पारित कर अधिनियम का रूप दिलाना होता है, जिसमें छत्तीसगढ़ शासन ने गंभीर चूक की है।
अध्यादेश जारी होने के बाद 16 जनवरी 2024 से 20 जनवरी 2024 तक आहूत छत्तीसगढ़ विधानसभा के सत्र में इस महत्वपूर्ण अध्यादेश को पारित नहीं कराते हुए मात्र विधानसभा के पटल पर रखा गया है. इसके कारण अध्यादेश वर्तमान में विधिशून्य/औचित्यविहीन बताया गया. ऐसी स्थिति में वर्तमान में उक्त संशोधन के आधार छत्तीसगढ़ पंचायत निर्वाचन नियम (5) में दिनांक 24 दिसंबर 2024 को किया गया संशोधन पूर्णतः अवैधानिक है, लेकिन इस पूरे मामले में 20 जनवरी को सुनवाई हुई और सरकार को कैबिनेट में पारित करने के संवैधानिक अधिकार के तहत 6 सप्ताह का समय दिया. मामले की सुनवाई के दौरान शासन के अधिवक्ता ने बताया कि इसको लेकर नया अध्यादेश जारी किया गया है, इसलिए अब सरकार के पास अगली कैबिनेट में उसे रखने का समय है. इसे सरकार अगले बजट सत्र में विधानसभा पटल में रख सकती है. वहीं बैंच ने दोनों पक्षों की लंबी बहस के बाद अपना फैसला सुनाते हुए याचिका को मेरिट बेस पर खारिज कर दिया।
Author: Priyanshu Vishwakarma
News creater, social activist,
Discover more from Bharti Media Network
Subscribe to get the latest posts sent to your email.