कल से शुरू होगा बस्तर पंडुम 2025: लोकसंस्कृति का महासंगम, परंपराओं का उत्सव

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बस्तर पंडुम 2025: लोकसंस्कृति का महासंगम, परंपराओं का संरक्षण

रायपुर। छत्तीसगढ़ की समृद्ध आदिवासी संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से “बस्तर पंडुम 2025” का भव्य शुभारंभ 12 मार्च से होने जा रहा है। यह आयोजन केवल एक महोत्सव नहीं, बल्कि बस्तर की पारंपरिक लोककलाओं, रीति-रिवाजों और जनजातीय जीवनशैली को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का एक सशक्त प्रयास है।

इस ऐतिहासिक आयोजन में जनजातीय नृत्य, पारंपरिक गीत, नाट्य, वाद्ययंत्र, वेशभूषा, आभूषण, शिल्प-चित्रकला और जनजातीय व्यंजन जैसे विविध सांस्कृतिक पहलुओं को प्रमुखता दी गई है। यह महोत्सव बस्तर की लोकसंस्कृति को वैश्विक पहचान दिलाने का एक सशक्त मंच बनेगा।

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लोककला के सात आयामों पर केंद्रित आयोजन

“बस्तर पंडुम 2025” सात प्रमुख सांस्कृतिक विधाओं पर केंद्रित होगा, जिसमें—

  1. जनजातीय नृत्य
  2. जनजातीय गीत
  3. नाट्य प्रदर्शन
  4. पारंपरिक वाद्ययंत्र
  5. वेशभूषा एवं आभूषण
  6. शिल्प-चित्रकला
  7. जनजातीय व्यंजन एवं पारंपरिक पेय

इन सभी विधाओं में प्रतियोगिताएं तीन चरणों में आयोजित की जाएंगी:

  • जनपद स्तरीय प्रतियोगिता: 12 से 20 मार्च
  • जिला स्तरीय प्रतियोगिता: 21 से 23 मार्च
  • संभाग स्तरीय प्रतियोगिता: 1 से 3 अप्रैल (स्थल: दंतेवाड़ा)

प्रतिभागियों को प्रत्येक चरण में विशेष पुरस्कार और प्रमाण पत्र दिए जाएंगे, जिससे उनकी कला को सम्मान और पहचान मिलेगी।


लोकसंस्कृति के संरक्षण का अनूठा प्रयास

“बस्तर पंडुम 2025” केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है, बल्कि यह बस्तर की लुप्त होती लोकसंस्कृति के संरक्षण और संवर्धन का एक सुनियोजित प्रयास है। प्रतियोगिताओं के दौरान पारंपरिक वेशभूषा, गीत-संगीत और शिल्पकला के प्रदर्शन को मौलिकता और पारंपरिकता के आधार पर परखा जाएगा।

इस महोत्सव में आदिवासी समाज के वरिष्ठ मुखिया, पुजारी, कलाकार और प्रशासनिक अधिकारी निर्णायक मंडल में शामिल रहेंगे, जिससे प्रतियोगिता की निष्पक्षता और पारदर्शिता बनी रहे।


नवाचार और आधुनिकता के बीच सांस्कृतिक संतुलन

आज के आधुनिक दौर में वैश्वीकरण और पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण पारंपरिक लोककलाएं धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर पहुंच रही हैं। “बस्तर पंडुम 2025” जैसे आयोजनों के माध्यम से इस सांस्कृतिक क्षरण को रोकने और आदिवासी परंपराओं को पुनर्जीवित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं।

इस महोत्सव का उद्देश्य केवल पुरानी परंपराओं को दिखाना ही नहीं, बल्कि उनमें नवाचार लाकर नई पीढ़ी को जोड़ना भी है। डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से इन पारंपरिक विधाओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया जाएगा, जिससे बस्तर की संस्कृति को एक वैश्विक पहचान मिल सके।


बस्तर पंडुम: एक ऐतिहासिक सांस्कृतिक आंदोलन

यह महोत्सव बस्तर के कलाकारों के लिए एक स्वर्णिम अवसर है, जिससे वे अपनी कला को संरक्षित करने के साथ-साथ एक नई पहचान भी बना सकें। यह आयोजन सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन है, जो छत्तीसगढ़ की अनमोल विरासत को जीवंत बनाए रखने में सहायक होगा।

“बस्तर पंडुम 2025” प्रत्येक नागरिक के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव रहेगा, जहां परंपराओं की धरोहर, कला की विविधता और सांस्कृतिक चेतना एक साथ गूंजेगी।

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Author: Sarik_bharti_media_desk

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