काऊ हग बिन वैलेंटाइन सूना! राजेंद्र शर्मा का विशेष व्यंग्य

काऊ हग बिन वैलेंटाइन सूना! वैलेंटाइन डे पर विशेष व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा

अब क्या कहेंगे मोदी जी के विरोधी? मोदी जी किसी और की तो सुनते ही नहीं है, बस अपने मन की सुनाते हैं और या तो भागवत जी के मन की करते हैं या फिर अपने दोस्तों के मन की; और भी न जाने क्या-क्या? लेकिन संसद में तो संसद में, संसद के बाहर भी मोदी जी ने उनकी आलोचनाओं के ऐसे-ऐसे जवाब दिए हैं कि अब वे मुंह खोलने से पहले दस बार सोचेंगे। एक बार फिर, एक अकेला सब पर भारी पड़ा है। संसद में भले ही हिंडनबर्ग भक्तों को भाव नहीं दिया हो, पर संसद के बाहर उन्होंने मामूली-सी आलोचनाओं का भी संज्ञान लिया है। गोमाता को नाराज और गोभक्तों को निराश करने का जोखिम उठाकर भी, ‘‘काउ हग डे’’ का पूरा का पूरा प्रोग्राम ही कैंसिल कर दिया है। वह भी बाकायदा देश-विदेश में मुनादी के बाद। रोजगार के अंतहीन इंतजार में मायूस नौजवानों को मोदी जी ने खुशी का एक और मौका दे दिया है — जा सिमरन जा, जी ले अपनी जिंदगी : मना ले अपना 2014 से पहले वाला वैलेंटाइन डे!

पर हाय मोदी जी, आपको विरोधी भी तो कुत्ते की पूंछ टाइप के मिले हैं — बारह साल नली में डालकर रखो, निकालो तो टेढ़ी की टेढ़ी। काउ हग डे मनते-मनते रह गया, लडक़े-लड़कियों वाला वैलेंटाइन डे उजड़ते-उजड़ते रह गया, पर मजाल है कि इनके मुंह से एक बार भी थैंक यू मोदी जी निकल जाए। अरे थैंक यू छोड़िए, कम-से-कम इसकी तो प्रशंसा कीजिए कि मोदी जी ने कम-से-कम इस मामले में अपने संघी भाइयों को सिर्फ आंख ही नहीं, बल्कि बाकायदा अपनी छप्पन इंची छाती दिखाई है। बेचारे गोभक्त पांव पीटते ही रह गए कि गाय के लिए ‘‘आ गले लग जा’’ के प्रेम प्रदर्शन दिवस के एलान के बाद, उस दिन भी छोरा-छोरी प्रेम का प्रदर्शन होने देना तो, गो माता का अपमान है, गो माता के साथ धोखाधड़ी भी है। और तो और बेचारों ने यह भी याद दिलाया कि अगर काउ हगिंग वाला वैलेंटाइन डे गोपूजक भारत में नहीं मनाया जाएगा, तो क्या गोभक्षक पाकिस्तान, अफगानिस्तान वगैरह या इंग्लेंड वगैरह में मनाया जाएगा!

नागपुरियों ने चुनाव संभावनाओं पर प्रतिकूल असर की धमकी भी दी। कारोबारियों ने देश भर में गाय-कैफे की शृंखला के अपने संभावित कारोबार तथा विश्व बाजार को तगड़ा धक्का लगने की आशंकाएं भी जतायीं। पर मोदी जी ने उनकी एक नहीं सुनी और साफ-साफ कह दिया — नौजवानों की कम से कम एक दिन की खुशी, मोदी के गद्दी पर रहते कोई और नहीं छीन सकता है! हां! बजरंगी भाई प्रेमी जोड़ों को लठियाकर इसी रोज अपना संस्कृति प्रेम प्रदर्शित करते रहें या पुलिस के रोमियो स्क्वैड कम खर्चे में पार्क-वार्क में वैलेंटाइन डे मनाने की कोशिश कर रहे जोड़ों पर टैक्स लगाते रहें या डंडे चलाते रहें, तो यह उनका अधिकार है।

आखिरकार, मोदी जी के राज में कम से कम डबल इंजन वाले इंडिया मेें डबल डेमोक्रेसी है। नौजवान लडक़े-लड़कियों को एक-दूसरे के लिए प्रेम के प्रदर्शन का अधिकार है, तो बजरंगियों वगैरह को परम्परा और संस्कृति के लिए अपने प्रेम के प्रदर्शन का भी, भुजबल से न हो तो लट्ठबल से भी उनकी रक्षा करने का भी, उतना ही अधिकार है। पहले सत्तर साल जो हुआ – सो हुआ, मोदी जी के नये इंडिया में सब को अपना-अपना करने का अधिकार है। यह सच्चा बहुलतावाद ही तो इंडिया यानी डेमोक्रेसी की मम्मी का, पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ा गिफ्ट बल्कि वरदान है!

बस इस तरह की अफवाहों पर कोई ध्यान नहीं दे कि मोदी जी ने नौजवानों की खुशी के लिए नहीं, नागपुरियों के सवालों की वजह से काउ हग डे का उत्सव कैंसिल किया है। यह कोरी अफवाह है कि नागपुरियों ने पशुपालन मंत्रालय से पहले यह तय करने के लिए कहा था कि गाय है क्या — माता या वैलेंटाइन? उसे वैलेंटाइन घोषित करने से पहले सरकार को इसका एलान करना चाहिए कि गाय अब माता नहीं रही। लेकिन, क्या यह हिंदू धर्म और संस्कृति के अनुरूप होगा? हमारे धर्मग्रंथों में गोमांस खाने का जिक्र भले ही आता हो, गाय को माता माना जाता हो या नहीं माना जाता हो, पर गाय को वैलेंटाइन कभी नहीं माना गया। जब वैलेंटाइन डे ही पश्चिमी परंपरा है, तो गाय को वैलेंटाइन मानने-मनवाने से यह भारतीय सनातन परंपरा कैसे हो जाएगी? और अगर सब कुछ यानी पॉलीथीन, कूड़े वगैरह पर गुजर करने के बावजूद, गाय माता ही है, तो उसके लिए मदर्स डे पहले से मौजूद है। अगर पशुपालन मंत्रालय या पशु कल्याण बोर्ड को वैदिक परंपराओं को विलुप्त होने से बचाने की वाकई चिंता है, तो पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव की काट के और भी उपाय हो सकते हैं। और कुछ नहीं, तो वैलेंटाइन डे का नाम आधिकारिक रूप से बदलकर मदनोत्सव टाइप कुछ किया जा सकता है। आखिरकार, हजार साल की ही गुलामी मानें तब भी, आखिरी दो सौ साल तो गोरों की गुलामी के ही थे। फिर गुलामी की निशानियां मिटाने में एकाध नाम तो गोरों से जुड़ा भी बदल सकते हैं या सारे के सारे नाम, गोरों से पहले वालों से जुड़े हुए ही होंगे तो बदले जाएंगे? खैर जो भी हो! वैलेंटाइन डे के खिलाफ लड़ाई में, बेचारी गो माता जी को घसीटना ठीक नहीं है!

और इस तरह की अफवाहों पर तो खैर किसी को हर्गिज विश्वास नहीं करना चाहिए कि मोदी जी ने काउ हग डे का उत्सव, डेयरी फार्मर्स फैडरेशन के अध्यक्ष, दयाभाई गजेरा के उनके गाय प्रेम को नकली बताने से नाराज होकर कैंसिल कराया है। बेशक, गजेरा ने मोदी जी की सरकार के गाय प्रेम को नकली बताया है। बेशक, गजेरा ने इसका इल्जाम लगाया है कि पिछले साल लम्पी बीमारी से जब दसियों हजार गायें मर गयी थीं, तब तो इन गाय प्रेमियों ने न गायों की सुध ली और न गाय पालने वालों की। फिर अब, काउ हग डे का नाटक क्यों, वगैरह। गजेरा ने ऐसा आरोप लगाया था, यह सही है। पर आरोप ही लगाया था, उसका कोई प्रमाण तो नहीं दिया था। संसद के बाहर का मामला था, सो आरोप भी बच गया, वर्ना संसद में मोदी जी की सरकार के खिलाफ बिना प्रमाण आरोप लगाया होता, तो स्पीकर ने गजेरा का आरोप भी गायब करा दिया होता, हिंडनबर्ग मामले में राहुल और खडगे के आरोपों की तरह। भला मोदी जी ऐसे मिटाऊ आरोपों से डरने वाले हैं क्या? रही बात शर्मिंदा होने-हवाने की तो, संतों को सीकरी से और छप्पन इंच की छाती वालों को शर्म से, भला क्या काम!

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।


Discover more from Bharti Media Network

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Discover more from Bharti Media Network

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading