दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों का मुद्दा: गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी भर्ती विवाद पर हाईकोर्ट का रुख

गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी में भर्ती विवाद: हाईकोर्ट में पहुंचा मामला

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बिलासपुर स्थित गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी में भर्ती को लेकर एक नया विवाद उत्पन्न हो गया है। इस मामले में यूनिवर्सिटी ने शपथपत्र दाखिल कर बताया कि कोर्ट के आदेश पर सभी दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित किया जा चुका है। वे सभी लोअर डिवीजन क्लर्क के पद पर कार्यरत हैं।

हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने यूनिवर्सिटी द्वारा जारी किए गए पे-स्लीप को पेश किया, जिसमें उन्हें अभी भी दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी ही बताया गया है। इस पर कोर्ट ने यूनिवर्सिटी से स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया। मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के जस्टिस एके प्रसाद की सिंगल बेंच में हुई।

क्या है पूरा मामला?

गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों पर नई भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई है। इस भर्ती प्रक्रिया को चुनौती देते हुए यूनिवर्सिटी के दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों ने याचिका दायर की थी। कर्मचारियों का कहना था कि वे 13 साल से ज्यादा समय से काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अब तक नियमित नहीं किया गया है।

कर्मचारियों का आरोप था कि हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद उन्हें नियमित नहीं किया गया है। वहीं, अब यूनिवर्सिटी प्रशासन नए कर्मचारियों की भर्ती कर रहा है, जिससे पुराने कर्मचारियों का हित प्रभावित हो सकता है।

यूनिवर्सिटी का जवाब

इस मामले में यूनिवर्सिटी की तरफ से एडवोकेट आशीष श्रीवास्तव ने कहा कि सभी कर्मचारियों को नियमित कर दिया गया है और वे वही पदों पर कार्यरत हैं। उन्हें न तो निकाला जा रहा है और न ही किसी प्रकार का नुकसान हो रहा है। याचिकाकर्ताओं ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि पे-स्लीप में अब भी कर्मचारियों को दैनिक वेतनभोगी बताया जा रहा है, जो कि स्थिति स्पष्ट होने तक ठीक नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने किया एसएलपी खारिज

उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ यूनिवर्सिटी ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी (स्पेशल लीव पेटिशन) दायर की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो दशकों से अधिक समय से कार्यरत दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित करने के मामले में हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप का कोई ठोस कारण नहीं है। इसके बाद कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में न्यायालय की अवमानना याचिका भी दायर की है।

कानूनी प्रक्रिया जारी

मामले की अगली सुनवाई में यूनिवर्सिटी को स्थिति स्पष्ट करने के लिए निर्देश दिया गया है। अब देखना यह है कि उच्च न्यायालय इस मामले में किस तरह का फैसला सुनाता है और कर्मचारियों के भविष्य पर इसका क्या असर पड़ेगा।

 

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Author: Sarik_bharti_media_desk

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