दुर्ग (छत्तीसगढ़): अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर जहां दुनिया भर में महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाया जा रहा था, वहीं छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में सहायक शिक्षक सड़कों पर अपनी नौकरी की बहाली के लिए संघर्ष कर रहे थे। सैकड़ों शिक्षकों ने सुपेला में प्रदर्शन किया और सरकार के खिलाफ रैली निकालकर अपनी पीड़ा व्यक्त की। शिक्षकों का कहना है कि सरकार केवल कमेटी गठित करने की बातें कर रही है, लेकिन ठोस निर्णय लेने से बच रही है।
संघर्ष की वजह: नौकरी से अचानक निष्कासन
2023 में नियुक्त किए गए ये सहायक शिक्षक बस्तर और सरगुजा संभाग में कार्यरत थे और बीते डेढ़ साल से बच्चों को पढ़ा रहे थे। लेकिन 1 जनवरी 2025 को साय सरकार ने एक झटके में 2900 सहायक शिक्षकों की सेवाएं समाप्त कर दीं। सरकार का तर्क है कि यह निर्णय न्यायालय के आदेशानुसार लिया गया है। हालांकि, प्रभावित शिक्षकों का कहना है कि सरकार ने पहले आश्वासन दिया था कि एक कमेटी इस मामले पर विचार करेगी, लेकिन डेढ़ महीने बीत जाने के बाद भी कोई ठोस समाधान नहीं निकला है।
प्रदर्शन कर रहे शिक्षकों के हाथों में तख्तियां और बैनर थे, जिन पर लिखा था— “कमेटी नहीं, कमिटमेंट चाहिए” और “नौकरी के बदले नौकरी चाहिए”। यह नारे उनकी निराशा और आक्रोश को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।
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शिक्षकों की पीड़ा: आर्थिक संकट और भविष्य की चिंता
नौकरी से निकाले गए शिक्षकों का कहना है कि वे अब बेरोजगार हो गए हैं और उनके परिवारों के सामने गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। एक प्रदर्शनकारी शिक्षक ने कहा, “हमने पूरी ईमानदारी से अपनी सेवाएं दीं, बच्चों को पढ़ाया, लेकिन अचानक हमें नौकरी से निकाल दिया गया। अब हमारे परिवार भुखमरी के कगार पर हैं।”
इसी तरह, सहायक शिक्षक पूर्णिमा ने बताया कि उनकी पूरी आशा सरकार से जुड़ी हुई थी, लेकिन अब वे खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। उन्होंने सवाल उठाया, “अगर हमारी नियुक्ति गलत थी, तो डेढ़ साल तक हमसे काम क्यों करवाया गया? और अगर हमारी नियुक्ति सही थी, तो हमें क्यों निकाला गया?”
क्या सरकार केवल समय बर्बाद कर रही है?
सरकार के रुख को लेकर शिक्षकों में असंतोष बढ़ता जा रहा है। सहायक शिक्षक निशांत वर्मा ने कहा कि सरकार केवल समय टालने की रणनीति अपना रही है और उनकी समस्याओं को गंभीरता से नहीं ले रही। उन्होंने कहा, “अगर जल्द ही कोई समाधान नहीं निकला, तो हम अनिश्चितकालीन आंदोलन करेंगे।”
इस आंदोलन की गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह केवल 2900 शिक्षकों की बात नहीं है, बल्कि उनके परिवारों की जीविका का सवाल भी है। सरकार के लिए यह एक चेतावनी है कि यदि जल्द निर्णय नहीं लिया गया, तो यह असंतोष और बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है।
आगे की राह: समाधान कब और कैसे?
सरकार को अब जल्द से जल्द इस मसले पर स्पष्टता लानी होगी। अगर यह मामला कोर्ट के आदेश के कारण उत्पन्न हुआ है, तो सरकार को कानूनी समाधान तलाशना चाहिए। यदि नई नियुक्तियों के लिए कोई योजना है, तो उसे शिक्षकों के हितों को ध्यान में रखते हुए लागू किया जाना चाहिए।
यह मामला केवल नौकरी जाने का नहीं, बल्कि शिक्षकों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता और शिक्षा नीति की पारदर्शिता का भी है। क्या सरकार केवल आश्वासन देकर शिक्षकों को शांत करने की कोशिश कर रही है, या वास्तव में इस समस्या का समाधान निकालने की इच्छाशक्ति रखती है? यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।
फिलहाल, निकाले गए सहायक शिक्षक इस इंतजार में हैं कि सरकार उनके भविष्य को लेकर क्या निर्णय लेती है। लेकिन अगर स्थिति ज्यों की त्यों बनी रही, तो आने वाले समय में यह संघर्ष और व्यापक रूप ले सकता है।
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Author: Sarik_bharti_media_desk
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